BA Semester-3 DarshanShastra - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।

अथवा
'बोधिसत्व' पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
'बोधिसत्व' एवं 'अर्हत' के प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
अथवा
बौद्ध नीतिशास्त्र में बोधिसत्व के आदर्श एवं अर्हत् की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

महात्मा बुद्ध अपने जीवन काल में ही जनसामान्य के मोक्ष की चिन्ता किया करते थे। हीनयान सम्प्रदाय वैयक्तिक मोक्ष को अपने जीवन का लक्ष्य स्वीकार करता है परन्तु महायान सम्प्रदाय की मान्यता है कि अपनी मुक्ति हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए, इसके विपरीत दूसरों की मुक्ति के लिए प्रयासरत् रहना चाहिए। महायान सम्प्रदाय का मूलमन्त्र लोक-कल्याण रहा है तथा इसी के अनुरूप वे केवल अपनी मुक्ति की अपेक्षा सभी जीवों की मुक्ति को जीवन का आदर्श मानते हैं। निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् वे संसार से विमुख नहीं होते हैं, बल्कि दुःखी प्राणियों के दुःख की समाप्ति तथा निर्वाण की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। महायान के इसी आदर्श को बोधिसत्व कहते हैं।

महायान सम्प्रदाय में जो व्यक्ति बोधिसत्व को प्राप्त करता है तथा लोक-कल्याण की भावना से क्रियाशील रहता है वह बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व का जीवन करुणा तथा प्रज्ञा से संचालित होता है। नागार्जुन ने कहा है कि सभी बोधिसत्व महकरुणाचित वाले होते हैं तथा प्राणिमात्र उनकी करुणा के पात्र होते हैं। बोधिसत्व में प्राणियों को दुःख से छुटकारा दिलाने के लिए अलौकिक शक्ति का संचार होता है। बोधिसत्व लोक-कल्याण की भावना से कार्य करते हैं तथा इस सन्दर्भ में वे आवागमन के कष्ट से भी भयभीत नहीं होते हैं बल्कि जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़ने पर भी उनका चित्त स्वच्छ रहता है। उनके मन में कोई आसक्ति नहीं होती है। बोधिसत्व जन्म-मरण के चक्र में फंसकर भी स्वच्छ तथा निर्मल रहते हैं। वे अपने कर्मों के द्वारा अन्य प्राणियों के दुःखों को दूर करते हैं साथ ही उन प्राणियों के अशुभ एवं पापपूर्ण कर्मों का योग भी स्वयं करते हैं। कर्मों के इस आदान-प्रदान को परिवर्त कहते हैं। बोधिसत्व की अवधारणा को स्वीकार करने के कारण ही महायान सम्प्रदाय बोधिसत्व ज्ञान कहलाता है। महायानियों के बोधिसत्व की तुलना गीता के स्थितप्रज्ञ एवं वेदांत के जीवन मुक्त अवस्था से की जा सकती है। बोधिसत्व सभी प्रकार के आध्यात्यिक गुणों से युक्त मनुष्य का सर्वोच्च आदर्श है। धर्म के क्षेत्र में बोधिसत्व की समानता ईश्वर से की जाती है।

बोधिसत्व का अर्थ है बोधि (ज्ञान) प्राप्त करने की इच्छा करने वाला व्यक्ति। यह सम्बोधि के पूर्व की अवस्था है। महायान में साधकों की निम्नलिखित तीन श्रेणियों को स्वीकार किया गया है :

(i) श्रावक - साधना के द्वारा केवल अर्हत् पद को प्राप्त करने वाला साधक श्रावक कहलाता है।

(ii) प्रत्येक बुद्ध - ऐसा साधक बिना गुरु की सहायता के ही बुद्धत्व का लाभ प्राप्त करता है। वह अपने निवार्ण प्राप्ति के बाद एकाकी जीवन व्यतीत करता है।

(iii) बोधिसत्व - सम्यक् समाधि की अवस्था प्राप्त करने वाला व्यक्ति बोधिसत्व कहलाता है। वह समाष्टि के कल्याण के लिए कार्य करता है। वह सभी प्राणियों को कष्टों से मुक्त कराना चाहता है तथा ऐसा करने से उसे आनन्द की अनुभूति होती है। बोधिसत्व अपने निवार्ण की प्राप्ति के पश्चात् अर्हत् की भाँति सन्तुष्ट नहीं हो जाता है, बल्कि सभी प्राणियों के निर्वाण का संकल्प लेता है। परोपकार तथा समाज सेवा उसके विशिष्ट गुण होते हैं। करुणा के वशीभूत होकर ही वह व्यक्तिगत निर्वाण को अनदेखी कर सभी के सुख के लिए अपने सुख का परित्याग करता है।

बोधिसत्व में परोपकार, सामाजिक सेवा, करुणा तथा परार्थता के भाव भरे रहते हैं। बोधिसत्व अन्य प्राणियों के दुःख से दुःखी तथा सुख से सुखी होता है तथा करुणा के वशीभूत होकर ही वह सामूहिक कल्याण के लिए तत्पर होता है। इसी भावना से प्रेरित होकर बुद्ध ने भी 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की शिक्षा दी। वे स्वयं बुद्ध होते हुए भी सबों को बुद्ध बनाना चाहते थे। लोक-कल्याण की भावना ही बोधिसत्व की आधारशिला है।

बोधिसत्व में लोक-कल्याण की भावना समाविष्ट है। लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही वे संकल्प करते हैं कि जब तक विश्व के सभी प्राणी कष्टमुक्त नहीं हो जाते तथा निवार्ण प्राप्त नहीं कर लेते तब तक वे परिनिर्वाण को नहीं अपनायेंगे। करुणा बोधिसत्व का आवश्यक धर्म है। यहाँ अन्य व्यक्तियों के निवार्ण की कामना करना तथा उसके लिए प्रयास ही बुद्ध धर्म है।

बोधिसत्व के लिए दो बातों को आवश्यक माना गया है तथा वे हैं बोधिचित्त एवं बोधिचर्या दान, शील, क्षांति (क्षमा), वीर्य, ध्यान तथा प्रज्ञा की षट् पारमिताओं के अभ्यास को बोधिचित्त कहा गया है। बुद्धत्व की प्राप्ति के पश्चात् सम्यक् सम्बोधि में चित्त को लगाना ही बोधिचित्त कहलाता है। बोधिसत्व के लिए जिन कठोर नियमों को स्वीकार किया गया है उन्हें ही बोधिचर्या के रूप में जाना गया है। इन नियामों के अन्तर्गत वेदना, पूजा शरण-गमन, पाप-ढेशना पुष्यानुमोदना, अध्येषणा, आत्मभावादि परित्याग हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि बोधिसत्व महायान सम्प्रदाय का सर्वोच्च एवं परम आदर्श है। यहाँ बोधिसत्व को देव तुल्य मानव के रुप में स्वीकार किया गया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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